- 2 Posts
- 1 Comment
दिवाली का पहला दिन है धनतेरस. यह एक ऐसा दिन है जहाँ से दिवाली की खुशियों की शुरुवात होती है और सभी उमंग उत्साह से भर जाते हैं. हम सभी जानते ही हैं की इस दिन पर सभी व्यापारी अपने ऑफिस में लक्ष्मी देवीजी की पूजा करते हैं ताकि वह धन और समृद्धि की वर्षा सारे साल हमपर करती रहे.
हम जानते हैं की धनतेरस २ शब्दों से आता है, धन अर्थात पैसे और तेरस अर्थात तेरवा दिन. यह तो हो गया दुनिया के हिसाब से परन्तु अगर हम देखें तो धनतेरस में तीन शब्दों के अर्थ भी निकल सकते हैं.
यह तीन शब्दों को अगर हम आध्यात्मिक रूप से देखें तो तीन शब्द होते हैं धन, ते, रस.
अब धन तो हम सब जानते ही हैं और हमने ऊपर उसका अर्थ भी जाना. ते का अर्थ हैं तेज. हम जानते भी हैं की दुनिया में जो मनुष्य आध्यात्मिक होते हैं उनके चेहरे पर एक तेज दीखता है. तेज अर्थात समज या कह सकते है ज्ञान. यह तेज को अपने अंदर लाने में काफी मेहनत करनी पड़ती हैं.
रस अर्थात जीवन में मिठास लाने वाली बातें. अब इसे आध्यात्मिकता से जोड़ा जाये तो अर्थ कुछ इस प्रकार निकलता हैं. धनतेरस में हम सोना भी खरीदते हैं. स्थूल धन तो हम सभी के पास हैं परन्तु उससे ख़ुशी की अनुभूति नहीं क्यूंकि धन साधन खरीद सकते है पर ख़ुशी नहीं. सच्चा धन तो है ज्ञान धन. अब आप कहेंगे की ज्ञान तो हमारे पास हैं. ज्ञान दुनिया का नहीं परन्तु स्वयं का, मैं कौन?
हमारी पहचान पैसे से, पदवी से, गाडी से नहीं परन्तु मैं एक आत्मा हूँ जो इस शरीर को चलने वाली शक्ति हूँ. बाकि तो सब हमे इस दुनिया में आकर मिला हैं. मेरा गाड़ी, बंगला, पदवी नहीं लेकिन मेरे हैं सात गुण जो हैं प्रेम, आनंद, शांति, पवित्रता, ख़ुशी, ज्ञान और शक्ति. इन्हे हम जितना आचरण में लाएंगे उतना खुश रहेंगे और हमारा तेज बढ़ता जायेगा.
अब अगर असली ज्ञान मिल जाये तो सारे रस तो ज़िन्दगी में घुल ही जायेंगे ना. तो आओ हम सभी मिलकर इस साल सच्चा धनतेरस मनाये और हमारे मन को स्वछता और गुणों से भरपूर करे ताकि लक्ष्मीजी सदा हमारे साथ रहें. अब लक्ष्मीजी साथ रहें तो वह हमे सोने जैसा बना ही देंगी. सोना तो महंगा है परन्तु हम उससे भी मेहेंगे है क्यूंकि सोना तो जड़ हैं परन्तु हम आत्माएं तो चैतन्य सोना हैं.
Read Comments